नियम ताक पर रख उच्च हिमालयी क्षेत्र में पहुंच रहे ट्रैकर

Rudraprayag: केदारनाथ क्षेत्र ऐसे कई जोखिम वाले ट्रैक रूट मौजूद हैं, जिन पर बिना जानकारी व सुरक्षा उपायों के जाना खतरे से खाली नहीं। इनमें कई तो 18000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर हैं। बावजूद इसके बड़ी संख्या में ट्रैकर नियमों को ताक पर रखकर बिना अनुमति के ही यहां पहुंच जाते हैं। इसकी खबर न तो प्रशासन को होती है और जिम्मेदार विभाग वन विभाग को ही।
बीते आठ वर्षों की ही बात करें तो 12 से अधिक ट्रैकिंग दल मौसम का मिजाज बिगडऩे के कारण इन ट्रैक रूट पर फंस चुके हैं। इस दौरान आठ ट्रैकर को जान भी गंवानी पड़ी। लेकिन, इन घटनाओं से प्रशासन व वन विभाग ने सबक लिया हो, लगता नहीं है।
केदारनाथ व मध्यमेश्वर घाटी में आधा दर्जन ट्रैक रूट पीढिय़ों से चले आ रहे हैं, जो ग्लेशियरों के बीच दुर्गम क्षेत्र से होकर गुजरते हैं। यहां कब बर्फबारी हो जाए या बर्फीला तूफान उठ जाए कहा नहीं जा सकता। यहां अधिकांश ट्रैकर मैदानी या समुद्र तटीय क्षेत्र से आते हैं, जिन्हें पहाड़ के भूगोल की जानकारी तक नहीं होती।
उस पर ये जिम्मेदार एजेंसियों को सूचना दिए बगैर ही ट्रैकिंग पर निकल पड़ते हैं। प्रशासन, पुलिस, पर्यटन विभाग व वन विभाग को इनके बारे में सूचना तब मिलती है, जब ये स्वयं किसी ट्रैक रूट पर फंसे होने या रास्ता भटक जाने की जानकारी देते हैं। लेकिन, सही लोकेशन पता न होने के कारण प्रशासन के लिए उन्हें रेस्क्यू करना भी चुनौती बन जाता है।
सितंबर 2018 में बंगाल के 21-सदस्यीय ट्रैकर दल में शामिल नौ ट्रैकर मध्यमेश्वर-पनपतिया ट्रैक पर फंस गए थे, जबकि एक सदस्य की मौत भी हो गई थी। सभी ट्रैकर भारतीय रेलवे के कर्मचारी थे। वायु सेना के प्रयासों से इनकी जान बच पाई। जून 2017 में भी 12-सदस्यीय एक दल इसी रूट पर फंस गया था।
तब प्रशासन ने हेली रेस्क्यू कर दल के सदस्यों की जान बचाई। इसी वर्ष एक दल बिना पंजीकरण के नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में ट्रैकिंग पर गया और पांच सदस्यों को जान गंवानी पड़ी। इसी तरह वर्ष 2015 में केदारनाथ-बासुकीताल ट्रैक रूट पर छह ट्रैकर फंस गए थे। कई दिनों तक बर्फ में ही रहने के बाद इनमें से दो की मौत हो गई।
ट्रैकिंग के लिए नियम
उच्च हिमालयी क्षेत्र में ट्रैकिंग के लिए जाने वाले व्यक्ति को वन विभाग से अनुमति लेने के बाद पर्यटन विभाग, प्रशासन व पुलिस को भी अपने ट्रैकिंग रूट की पूरी जानकारी देनी होती है। साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्र में जाने के लिए ट्रैकर के पास कुशल गाइड, पर्याप्त संसाधन, जरूरी कपड़े व दवाएं, टेंट आदि भी होने चाहिए। इसके बाद ही वन विभाग के कार्यालय में शुल्क जमा करने के बाद उसे ट्रैकिंग की अनुमति दी जाती है।